Powered By Blogger

यह ब्लॉग खोजें

पृष्ठ

गुरुवार, 18 मार्च 2010

पतझड़

नीम की हरी पत्तियां पीली हो कर गिर रहीं हैं पेड़ों से....
कह रहीं हैं बसंत चला गया, मैं पतझड़ आ गया हूं...
जिन्दगी में भी क्या पतझड़ आता है....
और क्या बसंत चला जाता है
और साथ ले जाता है क्या सारी खुशियां भी ....
खुशियां भी नीम की पीली पत्तियां की तरह झड़ जाती हैं जिंदगी से...
हमने सुना था पतझड़ खुश्क होता है लेकिन इस बार वो भी आंसूओं से नम हो गया...
बोलती सी ये आंखे पूछती हैं जीवन में पतझड़....सावन की तरह गिला क्यों हैं ?
सोचतें हैं बसंत के बाद पतझड़ क्यों आता है...क्यों लाता है जीवन में ग़म के पहाड़
टूटती पत्तियां...सूखता मौसम कहता है जीवन यही है...जहां बसंत चार दिन का होता है और फिर वही पतझड़ बसंत॥शरद के बाद लौट आता है
हाथ उठाकर कर दुआ में, भरकर आंख में तौबा के आंसू, पूछने चली जो खुदा से मेरी ख़ता क्या है...
मैं तो पूछती रह गई वो ना बोला कुछ मगर...
वो तो कुछ ना बोला
पर दिल से ईक दरक़ती सी आवाज़ आई...
जो तेरे॥नसीब में था...वही तेरी राह आई...
मैं तो नसीब लिखता हूं....
मैं तो नसीब...... लिखता हूं
फिर वो सुकून के दिन हो...या हों दर्द की रातें
ये तेरा तरीका है ...तू कैसे अपनाता है...

छूटता-सा जा रहा है जहां सारा
हम सफर की तैयारी में हैं॥
देके यादों वायदों और आंसूओं की सौगात
गर वक्त मिलें तो यादों के झरोखों में झांक कर इन पर पड़ी धूल झाड़ना और देखने की कोशिश करना
क्या वो अब भी वैसे ही है....।
रौशनाई की क़लम से....

रविवार, 9 नवंबर 2008

आदाब

आदाब दोस्तो आज से हम भी ब्लाग के सागर में गोता लगाने के लिए तैयार है......