नीम की हरी पत्तियां पीली हो कर गिर रहीं हैं पेड़ों से....
कह रहीं हैं बसंत चला गया, मैं पतझड़ आ गया हूं...
जिन्दगी में भी क्या पतझड़ आता है....
और क्या बसंत चला जाता है
और साथ ले जाता है क्या सारी खुशियां भी ....
खुशियां भी नीम की पीली पत्तियां की तरह झड़ जाती हैं जिंदगी से...
हमने सुना था पतझड़ खुश्क होता है लेकिन इस बार वो भी आंसूओं से नम हो गया...
बोलती सी ये आंखे पूछती हैं जीवन में पतझड़....सावन की तरह गिला क्यों हैं ?
सोचतें हैं बसंत के बाद पतझड़ क्यों आता है...क्यों लाता है जीवन में ग़म के पहाड़
टूटती पत्तियां...सूखता मौसम कहता है जीवन यही है...जहां बसंत चार दिन का होता है और फिर वही पतझड़ बसंत॥शरद के बाद लौट आता है
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1 टिप्पणी:
jeevan mei 'basant' aur 'patjhar' ka to atoot rishtaa hai...
lekin phir bhi
insaan ka mn hai k patjhar mei bhi saavan la detaa hai...
achhii rachnaa ke liye mubarakbaad .
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